तीन बार का सांसद, दो बार का प्रदेश अध्यक्ष, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का अध्यक्ष जब पार्टी पर षडयंत्र रचने और उपेक्षा करने का आरोप लगाकर उस कांग्रेस में शामिल होता है जिसके विरुद्ध उसका सारा राजनीतिक जीवन बीता, तब बीजेपी की यूज एंड थ्रो पालिसी का खुलासा हो जाता है।जब तक पार्टी को जरुरत तब तक सिर पर बिठाओ, मतलब निकालो और भूल जाओ। 2018 के विधानसभा चुनाव के ठीक पहले अटल बिहारी वाजपेई की भतीजी और सांसद, विधायक, रह चुकी करुणा शुक्ला के साथ भी भाजपा ने यही किया था, नतीजा भी भुगता था, आज इतिहास भी दोहरा रहा है और राज्य में समाप्त प्राय भाजपा का एक कद्दावर आदिवासी नेता कांग्रेस में शामिल हो गया है।राज्य में नेतृत्व संकट से जुझ रही भाजपा की यह कूटनीतिक पराजय है राज्य का पिछड़ा वर्ग मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का बड़ा समर्थक है,और अब कांग्रेस के पास एक बड़ा आदिवासी नाम भी जुड़ गया है। राज्य में टीएस सिंहदेव की नाराज़गी को कव्हर करने के साथ कांग्रेस साय की भाजपा द्वारा की गई उपेक्षा को राष्ट्रीय स्तर पर भी भूना सकती है और यह जता सकती है कि आदिवासी और दलित सिर्फ उपयोग के लिए ही हिंदु है।