उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार, सामाजिक चिंतक और राजनीतिक विश्लेषक अनुपम खत्री के खिलाफ पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर चल रही झूठी और भ्रामक खबरों की एक सुनियोजित श्रृंखला ने उन्हें मजबूर कर दिया है कि वह सार्वजनिक तौर पर अपना पक्ष रखें। मीडिया से संपर्क करने पर खत्री ने स्पष्ट किया कि यह अभियान सच्चाई बोलने की कीमत चुकवाने का प्रयास है — और अब वे चुप नहीं बैठेंगे।
मीडिया से बातचीत में खत्री ने कहा, “यह मेरे विरुद्ध एक व्यवस्थित दुष्प्रचार मुहिम है, जिसमें कुछ तथाकथित संपादक और उनके परिजन शामिल हैं। इनके पास न तथ्य हैं, न मर्यादा। मैं झूठ और दबाव के आगे कभी नहीं झुकता — और इसलिए वे अफवाहों का सहारा ले रहे हैं।”
खत्री ने इस साजिश के तार रोहित उर्फ राज छाबड़ा और उनके पिता राजकुमार उर्फ राज छाबड़ा (सीनियर) से जोड़े हैं। उनका कहना है कि दोनों बाप-बेटे पत्रकारिता के नाम पर निजी स्वार्थों के लिए सक्रिय रहे हैं और वर्तमान दुष्प्रचार का मूल स्रोत हैं। खत्री ने कहा, “ये बाप-बेटे सोशल मीडिया के माध्यम से गलत तथ्यों को फैलाकर मेरी छवि धूमिल करने की कोशिश कर रहे हैं — पर यह खेल अब ज्यादा दिन नहीं चलेगा।”
उन्होंने यह भी कहा कि इस अभियान में कुछ और लोग भी शामिल हैं — जिनमें उनके कुछ पुराने परिचित भी हैं, जो व्यक्तिगत कुंठा और ईर्ष्या के चलते इस षड्यंत्र में शामिल हुए हैं। “इन लोगों को मेरी बढ़ती पहचान और जनता में मेरे प्रति भरोसा खल रहा है। इसलिए वे झूठ की दीवारें खड़ी कर रहे हैं, पर सच्चाई के सामने वे टिकेंगी नहीं,” खत्री ने कहा।
खत्री ने स्पष्ट किया कि उन्होंने इस हमले का जवाब कानूनी और जनजागरण दोनों मोर्चों पर देने का निर्णय लिया है। अपनी पहली रिपोर्टिंग कार्रवाई के रूप में उन्होंने फेसबुक पर ‘पैराशूट संपादक — कालनेमि जमघट’ सीरीज़ की घोषणा की है, जिसके माध्यम से वे ठोस सबूत और दस्तावेजों के साथ इस नेटवर्क की परतें खोलेंगे। “मैं किसी को झूठा कहकर नहीं, बल्कि प्रमाण दिखाकर जवाब दूँगा,” उन्होंने जोड़ा। उन्होंने बताया कि सभी डिजिटल साक्ष्य — पोस्ट, चैट और वीडियो — सुरक्षित रखे जा चुके हैं और आवश्यकतानुसार विधिक प्रक्रिया भी शुरू की जा रही है।
मीडिया को दिए अपने संदेश में खत्री ने कुछ साथी पत्रकारों के तर्कों का भी उल्लेख किया — कुछ ने कहा कि मामले को हवा न दी जाए क्योंकि “पत्रकार पत्रकार से लड़े तो अच्छा नहीं होता।” इस पर खत्री ने सवाल उठाया: “क्या सिर्फ अखबार का रजिस्ट्रेशन किसी को पत्रकार बना देता है? आखिर क्यों हमारा पत्रकार समाज ऐसे फर्जी संपादकों का समर्थन करता है — क्या केवल इसलिए कि वे विज्ञापन और दलाली का माध्यम बने रहते हैं?”
खत्री ने चेतावनी में कहा, “जहरिली बेल को पोषित करोगे तो एक दिन वही जहर तुम्हारी रगों में भी उतर आएगा। मैं किसी से व्यक्तिगत रंजिश नहीं रखता, पर जो भी सच्चाई की आवाज़ दबाने की कोशिश करेगा, उसे कानून और जनता दोनों का सामना करना पड़ेगा। यह लड़ाई मेरी नहीं, पत्रकारिता की साख की है।”
खत्री ने मीडिया से अनुरोध किया कि वे इस मामले की निष्पक्षता और प्रमाण-आधारित रिपोर्टिंग सुनिश्चित करें और ऐसे तंत्रों का बहिष्कार करें जो पत्रकारिता के नाम पर ब्लैकमेलिंग और झूठ फैलाते हैं।