होली पर नेताओं के ये हाल देखकर आप हंसी के मारे लोट-पोट हो जाएंगे। पर नेता जी, ‘बुरा न मानो होली है’…
सहारनपुर की भांग, गैरसैंण का स्वांग
गैरसैंण को लेकर जब सूबे में सियासतबाजों का स्वांग हो रहा है तो हुजूर-ए-आला आला का सहारनपुर के लिए प्रेम उमड़ आया। उन्होंने वहां जो सहारनपुरी भांग घोटी, उसका नशा लोगों के सिर चढ़ कर अब तक बोल रहा है। हुजूर-ए-आला और उनके सिपहसालार सफाई देते-देते थक गए कि अरे भाई सहारनपुर के लिए जताया गया प्रेम, पुराना है। नया वाला तो गैरसैंण के लिए ही है। मगर नशा है कि उतरने का नाम नहीं ले रहा। सिपहसालार नशा उतारने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं। अब उन्हें कौन समझाए कि ये कोई लालपरी का नशा तो है नहीं कि रात गटकी और सुबह उतर गई। ये भांग है और वह भी सहारनपुरी.. इतनी आसानी से नहीं उतरेगी।
किस गुट में जाऊं, या अपना बनाऊं
बडे़ बे-आबरू होकर कुर्सी से रुखसत हुए। जाहिर है कि ख्यालों में सिर्फ कुर्सी ही है। पर यह अपना कांग्रेस का जो परिवार है, इसकी तुलना समुद्र से यूं ही नहीं की जाती। यहां अच्छे से अच्छा एक झटके में गुम हो जाता है। गुम होने का खतरा कांग्रेस के ‘किशोर’ को भी सता रहा है। मन मायूस है। मनोबल टूटा है। किस गुट में जाऊं या फिर अपना गुट बनाऊं, उधेड़बुन चल रही है। इसलिए कभी इस क्षत्रप के साथ हो जाते हैं, तो कभी दूसरे के साथ नजर आते हैं। बीच में तो स्वतंत्र राह ही चुन ली थी। उत्तराखंड की चिंता कुछ ज्यादा ही सताने लगी थी। सर्वदलीय जैसा मामला बन गया था, पर निकला कुछ नहीं। पार्टी में जहां खडे़ थे, वहीं पडे़ रहे। होली के त्योहारी मौसम में भी दिल उदास है।
बकरी स्वयंवर…मंत्री जी की तौबा-तौबा
बचपन में गुड्डे-गुड़िया की शादी का खेल कई बार खेला, देखा भी। यहां तक तो सब ठीक है। अब प्रचंडता के अहसास वाली सरकार आई, तो बकरियों की शादी देखने का बमुश्किल मौका हाथ आ रहा था। मगर अड़ंगा लग गया। बात ऐसी हो गई कि मंत्री जी को कहना पड़ा-तौबा-तौबा। मंत्री जी नए घर में आई हैं। नए घर के कायदे-कानून जानने में वक्त तो जरूर लगेगा। इसलिए बकरी स्वयंवर के लिए पूरी तैयारी कर ली थी। मंत्रोच्चार, विधि-विधान सब कुछ बकरी स्वयंवर में देखने को मिलना था। मगर मामला धर्म-संस्कृति का आ गया। अब धर्म-संस्कृति की पैरोकार सरकार के राज में ऐसा हो जाए, तो फिर बात ही क्या हो। इसलिए बडे़ दरबार से भी एनओसी नहीं मिल पाई। दिलचस्प बात और देखिए, मंत्री जी को नए घर के कायदे-कानून सिखाने वाले भी मंत्री महोदय ही रहे हैं। ये अलग बात है कि संस्कृति, धर्म और आध्यात्म से मंत्री महोदय का पुराना नाता है। इसलिए उन्होंने समझाया, तो फिर सब मान गए। अब बकरी स्वयंवर होगा तो सही, लेकिन मंत्र नहीं होंगे। अब ऐसे स्वयंवर का क्या मजा, जहां मंत्र नहीं होंगे। खैर… मंत्री जी का दावा है बकरी स्वयंवर का मजा कम नहीं होगा।
भगवे वाले अध्यक्ष के अरमानों पर रंग
अरमानों पर पानी फि रना तो सबने सुना है, लेकिन भगवे वाले अध्यक्ष अपने अरमानों पर ‘रंग’ फि रने से आशंकित हैं। उनकी यह आशंका कोई अकारण नहीं है। दरअसल, जब-जब उनकी होली बननी होती है, किस्मत बदरंग हो जाती है। विधानसभा चुनाव से पूर्व अध्यक्ष जी, हुजूरे आला बनने की रिहर्सल तक करने लगे थे। मगर जनता जनार्दन ने अपना असली रंग दिखाया तो उनके चेहरे के सारे रंग उड़ गए। अब फि र मौका आ रहा है। वह होली के रंगों में सराबोर होने की तैयारी कर रहे हैं। प्रचंडता के दम पर उनके लिए
राज्यसभा में जाना कठिन नहीं है। मौका भी है और दस्तूर भी। मगर टॉप पर बैठी जय-वीरू की जोड़ी के इरादे कुछ और ही बताए जा रहे हैं। फिर भी हाथों में पिचकारी लिए होली को यादगार बनाने के एक्शन में दिखाई दे रहे भगवे वाले अध्यक्ष जी की उम्मीद आखिरी क्षण तक जिंदा है। बेशक वह जानते हैं कि ज्यादातर मौकों पर पैराशूटरों ने उन जैसों के अरमानों पर कई बार काला रंग उड़ेला है ।
एसआईटी का प्रेत
हाईवे की खातिर जमीनों का ऐसा खेल हुआ कि गुलाबी नोटों की बाल्टियां भर गईं। गुलाबी रंगों की झमाझम बारिश में अफसर-नेता तर गए। जांच में खेल का खुलासा हुआ तो आनन-फानन में मुखिया ने सीबीआई जांच के आदेश कर दिए। लेकिन इससे पहले कि सीबीआई की पिचकारी छूटती, दिल्ली वालों ने उसका हैंडल ही मोड़ दिया। अंदेशा था कि कहीं गुलाबी रंग के छींटे दिल्ली वालों के दामन को ही दागदार न कर दें। लिहाजा अब हाथों में पिचकारी उठाए एसआईटी का प्रेत पूर्व मुखिया के पीछे दौड़ा दिया गया है। पूर्व मुखिया आगे-आगे और प्रेत पीछे-पीछे।\
देखन में छोटन, घाव करे गंभीर
जी हां, यह जीव देखने में तो छोटा है, लेकिन काम बड़े-बड़ों का लगा देता है। जड़े इतनी मजबूत हैं कि करीबी इनको हैंडपंप के नाम से जानते हैं। मतलब की तीन फुट ऊपर और तीन सौ फुट नीचे। उनकी काबलियत के तो बड़े वाले चच्चा और ताऊ जी भी मुरीद हैं, तभी तो छोटे भाई ने पहली बार कुश्ती जीतने के बाद कई बार मैदान मारने वालों को पीछे छोड़ दिया। चार और पांच बार मैदान मारने वाले किनारे पर बैठ कर तमाशा देख रहे हैं और अपना छोटा भाई चच्चा और ताऊ की कृपा से भौकाल जमाए हुए है। दिल जलता है तो जलने दे, आंसू न बहा फरियाद न कर की तर्ज का संदेश देते हुए अपना छोटा भाई रोज कोई ना कोई शिगूफा छोड़ देता है। बस सब पीछे लग जाते हैं। छोटे भाई की पहुंच इतनी है कि अपने पीछे किसी ना किसी पहलवान को खड़ा कर देता है। बाहर से बड़े पहलवान आ जाते हैं तो यहां वाले वैसे ही चुप हो जाते हैं। अभी जब एक पहलवान ने दिल्ली दरबार में जाकर ताऊ के सामने उल्टा-सुल्टा बोल दिया था तो उसका काम लग गया। अपने छोटे भाई ने जैसे-तैसे स्थिति संभाली और सब कुछ ठीक करा दिया। अपने भाई का जलवा ऐसा है, बगदादी लुटेरों के जुमले के कुख्यात भाई साहब सलाह लेते हैं।