देहरादून, । सन्त निरंकारी मण्डल द्वारा आयोजित रविवारीय सत्संग में प्रवचन करते हुए ज्ञान प्रचारक जसराम थपलियाल ने कहा कि सत्गुरु की अपार कृपा से ही सत्य का संग यानी कि सत्संग मिलता है और जब सत्गुरु की अपार कृपा होती है तो इस सत्संग रूपी ब्रह्मसभा में बैठने का मौका मिलता है। जैसे कहा भी गया है कि ‘सत्संग वह गंगा है इसमें जो नहाते है, पापी से भी पापी भवसागर से पार हो जाते है।’
उन्होंने कहा कि ब्रह्मज्ञानी तो निरंकार-दातार के साथ जुड़ा होता है, उसने अपने सर्वस्व निरंकार को अर्पण किया होता है। इसलिए वह जो भी कर्म करता है, ईश्वरीय इच्छा को पूरा करने के लिए करता है। क्योंकि ईश्वरीय इच्छा कल्याण करने वाली है, सबका भला करने वाली है, इसलिए ब्रह्मज्ञानी के कर्म भी सबका भला करने वाले ही होते है, कल्याणकारी ही होते है। जिस समय मनुष्य निरंकार ईश्वर से जुड़ा है, उससे बुरा कर्म हो ही नहीं सकता, और जब उससे कोई बुरा कर्म होता है, उस समय समझ लेना चाहिए कि वह निरंकार दातार से जुड़ा हुआ नहीं। उन्होंने कहा कि ज्ञान को सुनने, देखने और कहने से भी ज्यादा जरूरत उसे कर्म में उतारने की होती है। ब्रह्यज्ञानी भक्तों के जीवन में ज्ञान और कर्म दोनों ही हमेशा से विशेषता रही है। तभी हम ऊंचाइयों को प्राप्त कर सकते है। सत्संग समापन से पूर्व अनेकों सन्तों-भक्तों, प्रभु प्रेमियों ने गीतों, प्रवचनों द्वारा संगत को निहाल किया। मंच संचालन सुनील कुमार ने किया।