नकली के बीच असली बनारसी साड़ी ने फिर पकड़ा बाजार

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वाराणसी (मुहम्मद रईस)। डेढ़ दशक तक जूझने के बाद बनारसी वस्त्र उद्योग में रंगत लौट आई है। पिछले चार साल में कारोबार में 32 फीसद वृद्धि दर्ज हुई है, जो इसके पटरी पर लौट आने का पुख्ता संकेत है। पूर्वांचल निर्यातक संघ के कोषाध्यक्ष जुनैद अहमद अंसारी बताते हैं कि प्योर सिल्क, कॉटन और कढ़ुआ साड़ियों का कारोबार लगभग 32 फीसद बढ़ा है, जिसका सीधा फायदा बुनकरों को मिल रहा है।

जीआई (जियोग्राफिकल इंडिकेशन) बौद्धिक संपदा विशेषज्ञ डॉ. रजनीकांत के अनुसार 2007 में बनारसी साड़ियों को जीआई टैग प्रदान किए जाने के लिए आवेदन किया गया था। 4 सितंबर 2009 में बनारसी साड़ियों का जीआई पंजीकरण हुआ। इसके बाद कारोबार पटरी पर लौटने लगा। 150 रुपया रोजाना पाने वाले हथकरघा बुनकर अब 500 तक कमा रहे हैं।

श्रेय पीएम मोदी को 

परंपरागत उद्योग में तेजी का अनुमान इससे भी लगाया जा सकता है कि यहां कढ़ुआ काम करने वाले हथकरघा बुनकरों की मांग बेहद बढ़ गई है। बढ़िया बुनकरों की भारी कमी महसूस की जा रही है। इस कमी की भरपाई के लिए प्रयास शुरू कर दिए गए हैं। नई पीढ़ी, खासकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिलाया जा रहा है। बनारस से सांसद चुने जाने के बाद बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हथकरघा और हस्तशिल्प के लिए यहां कई सौगातें दीं।

हथकरघा क्षेत्र के लिए वाराणसी में नौ कॉमन फैसिलिटी सेंटर,10 ब्लॉक स्तरीय क्लस्टर, दीनदयाल हस्तकला संकुल एवं निफ्ट (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन डिजाइनिंग) केंद्र इस उद्योग में नई जान फूंकने में सफल रहे हैं। वहीं देश-विदेश में आयोजित प्रदर्शनियों में बुनकरों को भेज उन्हें सीधा लाभ दिलाया जा रहा है।

छह लाख परिवारों की रोजी 

जलालीपुरा के रहने वाले बुनकर मुहम्मद कलीम का कहना है कि इसमें कोई संदेह नहीं कि पहले की तुलना में अब बनारसी साड़ियों के ऑर्डर बढ़े हैं, मेहनताना भी ठीक मिलने लगा है। रमजान अली कहते हैं कि अब भी बिचौलियों और नकली बनारसी साड़ी से असल बनारसी साड़ी और हथकरघा बुनकर जूझ रहे हैं। लगभग 1500 करोड़ रुपये के सालाना कारोबार वाले इस घरेलू उद्योग में लगभग छह लाख लोग प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से जीविकोपार्जन कर रहे हैं।

नकली से सावधान 

बाजार में बनारसी के नाम पर नकली साड़ियां भी मौजूद हैं। नकली साड़ियों को चीनी सिंथेटिक धागों से तैयार किया जाता है, जबकि बनारसी साड़ी रेशम से तैयार होती है। जीआई टैग, हैंडलूम व सिल्क मार्क लग जाने के कारण नकली साड़ियों के बीच असली की पहचान आसान हो गई है। आमतौर पर भारतीय ग्राहकों को यह पता ही होता है कि असली बनारसी साड़ी की कीमत सामान्य से बहुत अधिक होती है, लेकिन सस्ते के नाम पर नकली साड़ी थमाकर लोगों को ठगा जा रहा है।

बनारसी साड़ी की कीमत

प्योर सिल्क पर रियल गोल्ड व सिल्वर से तैयार परंपरागत बनारसी साड़ी की शुरुआती कीमत 65 हजार रुपये है। अधिकतम कीमत डेढ़ से दो लाख रुपये तक है। सामान्य तौर पर हथकरघा बुनकरों द्वारा बनाई गई ऐसी बनारसी साड़ी, जिसमें सोने-चांदी के तारों का इस्तेमाल नहीं होता और सिर्फ जरी (सोने व चांदी के रंग चमकीला धागा) की कारीगरी होती है, वह कम से कम आठ हजार रुपये की होगी। इससे कम कीमत में मिलने वाली साड़ी बनारसी नहीं होती, वह पावर लूम पर तैयार होती है। यही वजह है कि कई जगहों पर दो-चार हजार रुपये में भी बनारसी साड़ी के नाम पर पावर लूम की बनी साडियों को धड़ल्ले से खपाया जाता है।

खरीदते समय बरतें सावधानी

यदि ग्राहक ऐसी बनारसी साड़ी खरीद रहे हैं, जिसपर जीआइ टैग, हैंडलूम व सिल्क मार्क नहीं है, तो निश्चित तौर पर वह नकली है।

जीआइ टैग : जीआई टैग उत्पाद की गुणवत्ता और मौलिकता, उत्पादन के स्थान की पुष्टि करता है।

सिल्क मार्क: रेशमी उत्पादों की पुष्टि करता है।

हैंडलूम मार्क: बनारसी हथकरघा उत्पादों के लिए हथकरघा विभाग की ओर से दिया जाता है।

बिल : असली बनारसी साड़ी खरीदने पर बिल में साड़ी में प्रयुक्त रेशम का प्रकार व मात्रा, सोने, चांदी की मात्रा, वजन आदि जानकारी भी उपलब्ध कराते हैं।

असली रेशम और सोने-चांदी के तारों व जरी से बनी होने के कारण परंपरागत बनारसी साड़ी भारी होती है। एक सिरा लटका कर देखें, वजन के कारण बीच में झोल अवश्य आएगा।

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