मणिपुर में हुई हिंसा के सबूत अभी भी देखे जा सकते हैं. कंचुपसिंघा और लैंग्गोल गेम विलेज नाम के दो गांव ऐसे हैं, जहां आज भी लोग वापस लौटकर नहीं आए हैं.
मणिपुर में कुकी और मैतेई जनजातियों के बीच हुई हिंसा में राज्यों के कई गांव राख के ढेर में तब्दील हो गए. इनमें से दो गांव कंचुपसिंघा और लैंग्गोल गेम विलेज हैं. इन दोनों गांवों में भी उपद्रवियों ने जमकर उत्पात मचाया. सबसे पहले बात करते हैं लैंग्गोल गेम विलेज की, जिसे नेशनल गेम विलेज भी कहा जाता है. इस गांव की आबादी करीब 5 हजार के करीब है. 3 मई को जैसे ही मणिपुर के सीसीपुर में हिंसा भड़की उसकी आंच इस गांव तक भी पहुंची. इस गांव में मिलीजुली जाति के लोग एक साथ रहते हैं.
गांव के एंट्री गेट पर मणिपुर सरकार के कर्मचारियों और पुलिसकर्मियों के भी आवास हैं. हिंसा शुरू होते ही कुकी और मैतेई जाति के लोगों एक दूसरे के घरों को निशाना बनाना शुरू कर दिया. अचानक से उपद्रव इतना भड़का कि लोग अपने-अपने घरों से भागने लगे. भागते वक्त जो सामान उनके हाथ लगा, बस वही उनके साथ रह गया और उपद्रवियों ने घरों को आग के हवाले कर दिया. इस गांव में करीब 70 से ज्यादा घरों, दुकानों और धार्मिक स्थलों को फूंक दिया गया.
चर्च तक को उपद्रवियों ने नहीं बख्शा
सिर्फ इतना ही नहीं गांव में रहने वाले मणिपुर के सरकारी कर्मचारियों और पुलिसवालों ने अपने परिवार के साथ भागते समय घरों के बाहर नेमप्लेट की जगह अपनी जाति का नाम लिख दिया. यहां हर घर के बाहर आपको उनमें रहने वाले लोगों के नाम के अलावा उनकी जाति कागज पर लिखकर चस्पा की गई दिखाई देगी. उपद्रवियों ने गांव में मौजूद चर्च को भी नहीं बख्शा. उन्होंने वाहनों में आग लगाई और फिर चर्च में तोड़फोड़ करते हुए उसमें आग लगा दी.
कंचुपसिंघा में भी दिखा हिंसा का असर
ठीक इसी तरह इंफाल के बाहरी इलाके में मौजूद कंचुपसिंघा गांव को उपद्रवियों ने हिंसा के दौरान आग के हवाले कर दिया. जिस वक्त शाम को हिंसा हुई, उस वक्त लोग घरों में खाना खा रहे थे. हिंसा की आग को देखकर वे जस का तस खाना छोड़कर जान बचाने के लिए भाग पड़े. इसके निशान आज भी गांव में मौजूद हैं. ये गांव मणिपुर के बाहर ठीक पहाड़ों के नीचे बसा है.