कर्नाटक में फ्लोर मैनेजर्स की फाइट में फेल हुई बीजेपी

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बीजेपी के लिए येदियुरप्पा को दरकिनार करना आसान नहीं था. इसलिए उनके बेट बी वाई विजयेन्द्र को शिकारीपुर से टिकट दिया गया. कहा जाता है कि सी टी रवि येदियुरप्पा के खिलाफ 14 मार्च को खुलकर बयान दे चुके थे और इसको लेकर पार्टी के बड़े नेताओं का उन्हें कोपभाजन भी बनना पड़ा था.

कर्नाटक में बीजेपी की असफलता की वजहों पर चर्चा पर तेज हो गई है. दक्षिण के राज्य कर्नाटक में हाई प्रोफाइल कैंपने के बावजूद पार्टी 38 सालों के इतिहास को तोड़ने में नाकाम रही है. ऐसे में पार्टी के लिए मिशन साउथ की सोच को गहरा झटका लगा है और इसकी वजह बीजेपी के बड़े नेताओं के बीच गहरे मतभेद का होना बताया जा रहा है. चेहरे बदलने को लेकर पार्टी में गहरे मतभेद हार की वजह बनी? दरअसल बीजेपी के साथ तीन दशकों तक जुड़े रहने वाले जगदीश शेट्टार ने खुले आम बीजेपी के दो नेता बी एल संतोष और प्रह्लाद जोशी पर आरोप लगाकर कठघरे में खड़ा किया था.

बीजेपी के पुराने नेताओं की ओर से पार्टी से किनारा करना कई मायनों में काउंटर प्रोडक्टिव रहा है. पहले बीएस येदियुरप्पा को इंटरनल प्रेशर की वजह से सीएम पद से हटाना और बसवराज बोम्मई के हाथों सत्ता की चाभी सौंपना बीजेपी को कई धरों में बांट चुका था. जगदीश शेट्टार और लक्ष्मण शावडी को बीजेपी में टिकट नहीं देना लिंगायत कम्यूनिटी के बीच गहरे असंतोष की वजह मानी जा रही है. कहा जाता है कि बासव राज बोम्मई भले ही लिंगायत समाज से ताल्लुख रखते हैं लेकिन बीजेपी को साल 1980 से लिंगायत के बीच खड़ी करने में बी एस येदियुरप्पा का हाथ है.

लिंगायत समुदाय को मोह भंग

इसलिए लिंगायत समाज बीजेपी के इस नए प्रयोग को लेकर नाराज हो चुका था. इस माहौल में आग में घी डालने का काम जगदीश शेट्टार और लक्ष्मण शावडी ने किया जिन्होंने बीजेपी द्वारा अपमान किए जाने का आरोप लगाकर बीजेपी को कटघरे में खड़ा किया. बीजेपी ने जगदीश शेट्टार के करीबी महेश तेनगिनिया को टिकट जरूर दिया और उनकी जीत भी हुई लेकिन लिंगायत समाज में बीजेपी से बेहतर कांग्रेस को समर्थन मिलना लिंगायत के बीच कमजोर पड़ती पकड़ का प्रत्यक्ष उदाहरण है.

लिंगायत सीटों पर बीजेपी को लगा झटका

जगदीश शेट्टार कांग्रेस की टिकट से हार गए हैं वहीं लक्ष्मण शावडी जीत गए हैं लेकिन बीजेपी द्वारा किया जाने वाला ये बदलाव लिंगायत समाज में बीजेपी को लेकर नाराज़गी की वजह बनी है. कहा जाता है कि पार्टी के भीतर की अंदरूनी मतभेद की वजह से येदियुरप्पा हटाए गए थे और उन्हें और उनके समर्थकों को दरकिनार कर पार्टी अपने परंपरागत वोटर्स से दूर जा खड़ी हुई है.

यही वजह है कि 78 लिंगायत बाहुल्य विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी कांग्रेस से सीटें जीतने में कहीं पीछे रही है. बीजेपी ने 14 फीसदी आबादी वाली लिंगायत को 30 फीसदी टिकट का बांटकर उन्हें साधे रखने का प्रयास किया लेकिन ये प्रयास धरा का धरा रह गया है. पार्टी चुनाव से पहले येदियुरप्पा को दरकिनार करने का नुकसान भांपकर उन्हें मनाने में जुट गई थी. लेकिन येदियुरप्पा द्वारा कैंपेन का जिम्मा थामने के बावजूद बीजेपी लिंगायत समाज पर अपनी मजबूत पकड़ ढीली कर चुकी थी.

लोगों को समझा नहीं पाई बीजेपी

येदियुरप्पा के कई समर्थक पार्टी में येदियुरप्पा को नकारे जाने के बाद असहाय महसूस करने लगे थे इसलिए पार्टी बदलकर या पार्टी में गौण रहकर बीजेपी के खिलाफ विरोध की भावना से काम करने में जुट गए थे. चुनाव कैंपेन में येदियुरप्पा को उम्मीदवार नहीं बनाने से भी लिंगायत समुदाय खासा कन्फ्यूज्ड रहा और बीजेपी की रणनीति मसले को सुलझाने में पूरी तरह नाकामयाब रही है.

कई धरों में बंटी पार्टी एकजुट रहकर लड़ने में नाकामयाब रही?

बीजेपी के लिए येदियुरप्पा को दरकिनार करना आसान नहीं था. इसलिए उनके बेट बी वाई विजयेन्द्र को शिकारीपुर से टिकट दिया गया. वैसे येदियुरप्पा के करीबी यूबी बानकर,किरण कुमार,मोहन लिमबिकी,एचडी थमनैया येदियुरप्पा के करीबी गिने जाते थे जो कांग्रेस का दामन कुछ महीने पहले थाम चुके थे. पुराने चेहरे को बदलकर नए चेहरे को लाने की बात जान येदियुरप्पा के पर कतरने की बात उनके समर्थकों को समझ में आ चुकी थी.

येदियुरप्पा और सीटी रवि के बीच विवाद

हद तो तब हो गई जब बीजेपी के विजय संकल्प रैली में येदियुरप्पा और सी टी रवि के बीच का मतभेद सतह पर आ गया था. येदियुरप्पा बीच मीटिंग को छोड़कर नाराज होकर निकलने को मज़बूर हुए थे. दरअसल बीजेपी का एक ग्रुप मुदीगर के विधायक एम पी कुमारस्वामी के विरोध में नारे लगाने में लगा रहे थे . विधायक एम पी कुमारस्वामी कुमारस्वामी येदियुरप्पा के करीबी कहे जाते हैं और सी टी रवि के समर्थक विधायक एम पी कुमारस्वामी के विरोध में नारे लगाकर उन्हें घेरने का प्रयास कर रहे थे.

येदियुरप्पा को बदनाम करने की कोशिश की गई

कहा जाता है कि सी टी रवि येदियुरप्पा के खिलाफ 14 मार्च को खुलकर बयान दे चुके थे और इसको लेकर पार्टी के बड़े नेताओं का उन्हें कोपभाजन भी बनना पड़ा था. कर्नाटक में टिकट के बंटवारे को लेकर सी टी रवि येदियुरप्पा के बेटे बी वाई विजयेन्द्र को टिकट देने के खिलाफ थे. इसलिए सी टी रवि ने ये कहकर येदियुरप्पा को नाराज कर दिया था कि किसी नेता के घर में टिकट देने को लेकर फैसला नहीं लिया जाएगा. कहा जाता है येदियुरप्पा इससे इतने नाराज थे कि उन्हें मनाने के लिए बीजेपी के बड़े नेता को काफी मशक्कत करनी पड़ी थी.

लेकिन सी टी रवि के बयान इकलौती वजह नहीं है .बीजेपी के एमएलए विरूपक्षप्पा और उनके बेटे के खिलाफ लोकायुक्त पुलिस की जांच भी येदियुरप्पा के खिलाफ की जाने वाली वो राजनीति थी जिससे एमएलए विरूपक्षप्पा को चुनाव से दूर रखने के लिए इसे अंजाम दिया गया था. दरअसल एमएलए विरूपक्षप्पा येदियुरप्पा के करीबी हैं उनपर जांच कर येदियुरप्पा को बदनाम करने की कोशिश की गई थी ऐसा कहा जाता है. ज़ाहिर है बीजेपी में येदियुरप्पा,ऑर्गेनाइजेशन सेक्रेटरी बी एल संतोष और बीजेपी के सीएम बसवराज बोम्मई के समर्थकों के बीच की लड़ाई सतह पर थी और बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व इसे खत्म करने में असफल रही है.

अंदरूनी कलह की वजह से पार्टी अच्छे कामों को गिनाने में नाकाम रही

डबल इंजन की सरकार द्वारा किए गए कार्यों को पार्टी गिनवाने में भी नाकामयाब रही है. इंफ्रास्ट्रक्चर में हुए कामों को बीजेपी बताने में अंदरूनी लड़ाई की वजह से जनता के बीच ले जाने में असफल रही है. बिदर कलबुर्गी रेलवे लाइन,बैंगलुरू मैसूर हाइवे सहित बिदर कलबूर्गी बेल्लारी हाइवे के निर्माण के अलावा बैंगलुरू सबअर्बन रेलवे लाइन की शुरूआत को बीजेपी जनता के के बीच भुनाने में असफल रही है.

इतना ही नहीं गांव में 6000 किलोमीटर की सड़कों से लेकर 411 किलोमीटर की बिदर कलबूर्गी बेल्लारी हाइवे के निर्माण को भुनाकर पार्टी बेहतर परफॉर्म करने में फेल हुई है. ज़ाहिर है आंतरिक लड़ाई में ही एक दूसरे के खिलाफ स्कोर सेटल करने की फिराक में बीजेपी दक्षिण के इकलौते राज्य कर्नाटक में सरकार फिर से बनाने से चूक गई वहीं कांग्रेस इसका भरपूर फायदा लेने में सफल रही है.

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