उत्तराखण्ड सरकार द्वारा धर्म परिवर्तन के मामले की गम्भीरता को देखते हुये उत्तराखंड धर्म स्वतन्त्रता विधेयक बनाने की तैयारी कर ली हैं।
उत्तराखंड सरकार द्वारा लिया गया ये फैसला वाकई काबिले तारीफ हैं।
भारत में ईसाई मिशनरीज़ द्वारा लगातार धर्म परिवर्तन का काम किया जा रहा हैं। मिशनरीज़ इस काम के लिए अपार धन खर्च करती हैं।
“लेकिन सवाल यह है कि आखिर जनमानस को धर्म परिवर्तन की आवश्यक्ता पड़ती क्यों हैं?”
ऐसी क्या मजबूरी होती हैं कि व्यक्ति धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर हो जाता हैं?
इस प्रश्न का हल ढूढ़ना भी सरकार की एक अहम जिम्मेदारी हैं।
सिर्फ धर्म परिवर्तन पर रोक लगाना और सजा का प्रावधान करना धर्म परिवर्तन पर रोक लगाने के लिए कितना कारगार सिद्ध होगा यह एक विचारणीय प्रश्न हैं।
हमारे देश अथवा राज्य में गरीबी एक अभिशाप बन चुकी हैं।
धर्म परिवर्तन का सबसे ज्यादा शिकार गरीब एवं लाचार तबका ही होता हैं।
धर्म परिवर्तन कराने के लिए इनकी नज़रें किसी अन्य धर्म के संपन्न वर्ग पर पडऩे के बजाए गरीब,असहाय व उपेक्षित जनता पर रहती हैं।
गरीब एवं असहाय वर्ग को तरह तरह के प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन के लिए आसानी से तैयार कर लिया जाता हैं।
भारत में जातिवादी प्रथा पर विश्वास रखने वाला हिंदू समुदाय भी कुछ हद तक धर्म परिवर्तन के लिए जिम्मेदार हैं।
भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है ,यहाँ पर सभी धर्मों को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता हैं।
प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म का पालन करने का पूरा अधिकार हैं,फिर भी हमारे देश में वर्ण एवं जाती प्रथा ने हिंदुओं को आपस में ही विभाजित कर दिया है,आज भी भारत में समाज के कुछ वर्ग को छोटी अथवा नीची जाती का माना जाता है।
हिंदू धर्म का तथाकथित उच्च जाति का व्यक्ति इन निम्र अथवा नीची जाति के कहे जाने वाले लोगों से भेद-भाव रखता है। उन्हें अपमान व उपेक्षा की नज़र से देखता है। उच्च जाति के लोग इनको मंदिरों तक में प्रवेश करने नहीं देते।
इसी ऊंच नीच की भावना से ग्रसित होकर व्यक्ति धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर हो जाता हैं।
अतः सरकार को चाहिए कि धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए सबसे पहले वह जात-पात के नाम पर होने वाले भेदभाव को रोकने के लिए सख्त कानून बनाये और साथ ही सरकार को गरीब एवं आर्थिक रूप से कमजोर तबके के विकास के लिए भी कुछ महत्वपूर्ण निर्णय लेने होंगे,तब जाकर ही धर्म परिवर्तन पर स्थायी रूप से रोक लग सकती है।
दीपा धामी