एक साल का अतिरिक्त कार्यकाल देने के बाद भारत सरकार ने देशभर के सभी 56 कैंटोनमेंट बोर्ड को भंग कर दिया है। बोर्ड अगले 1 साल तक भंग ही रहने की उम्मीद है। आदेश के मुताबिक नए बोर्ड के गठन या फिर अगले वर्ष तक ये भंग ही रहने की उम्मीद है । तब तक cantonemnet board को लेकर क्या व्यवस्था की जाएगी, ये साफ नहीं है। माना जा रहा है कि इस अवधि के लिए काम चलाऊ व्यवस्था के तौर पर दूसरे बोर्ड का गठन किया जा सकता है। गढ़ी-प्रेमनगर कैंट बोर्ड एक साल पहले ही कार्यकाल पूरा कर चुका है। इसके बावजूद चुनाव कब होंगे, केंद्र सरकार अभी तक ये ही तय नहीं कर पाई है।


बोर्ड में निर्वाचित जन प्रतिनिधियों के साथ ही सेना के सब एरिया के अधिकारी भी शा
मिल होते हैं। मुख्य अधिशासी अधिकारी इसके सचिव होते हैं। सब एरिया कमांडर लेवल अधिकारी अध्यक्ष होते हैं। माना जा रहा है कि निर्वाचित जन प्रतिनिधियों के न होने और चुनावों के बारे में दूर-दूर तक अंदाज न होने से कैंट क्षेत्रों में विकास कार्य ठप पड़ जाएंगे जाएंगे। बजट आने की उम्मीद और कम हो जाएगी। लोगों की सुनवाई में कमी आएगी।
खास बात ये है कि कई वर्षो से कैंट बोर्ड में बजट न आने के कारण देहरादून के गढ़ी और
प्रेमनगर कैंट में तमाम विकास कार्य एकदम ठप पडें है। जो थोड़ा-बहुत काम हो भी रहा है , वे सब काम विधायक निधि से कराए जा रहे हैं। बीजेपी नेता और पूर्व बोर्ड उपाध्यक्ष विष्णु प्रसाद के मुताबिक निर्वाचित प्रतिनिधि अवाम और बोर्ड अफसरों के बीच अहम होते हैं। उनके बगैर कैंट बोर्ड में सामान्य कार्य भी बिना किसी रोकटोक हो पाएंगे। लोगों को परेशानियों से बचाने और विकास कार्यों को शुरू कराने के लिए वैकल्पिक बोर्ड का गठन तत्काल सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
इसकी उम्मीद कम ही दिख रही कि कैंट बोर्ड के चुनाव उत्तराखंड-उत्तर प्रदेश में एक बोर्ड के चुनाव एक साल बाद भी सुनिश्चित हो पाएंगे। एक साल बाद पहले तो दोनों राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे होंगे। ऐसे में कैंट बोर्ड के चुनाव और आगे बढ़ाए जा सकते हैं। विधानसभा चुनाव के बाद ही बोर्ड के चुनाव की उम्मीद दिखाई देते हैं।