यूपी में डॉक्टर्स का अकाल, 18000 की आबादी पर सिर्फ एक तैनाती

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UP Doctors Shortage: उत्तर प्रदेश में ढूंढ़े नहीं मिल रहे डॉक्टर, 18 हजार की आबादी पर सिर्फ 1 की तैनाती

उत्तर प्रदेश डॉक्टरों की कमी से जूझ रहा है. सरकार ठेके पर भी उनकी भर्ती कर रही है, तब भी डॉक्टर नौकरियों के लिए अप्लाई नहीं कर रहे हैं. यहां तक की पांच लाख रुपये की सैलरी पर भी डॉक्टर काम करने को तैयार नहीं हैं.

उत्तर प्रदेश में बड़ी संख्या में डॉक्टर्स की कमी है. डॉक्टर पहले तो मिल नहीं रहे. आवेदन करते हैं तो इंटरव्यू देने नहीं आ रहे हैं. सेलेक्शन होने पर जॉइन नहीं कर रहे हैं. समस्या के निदान के लिए सरकार अब ठेके पर भर्ती शुरू कर दी है. डॉक्टरों की बोली लगाकर भर्ती हो रही है. पांच-पांच लाख रुपये महीने पर भी डॉक्टर्स नहीं मिल रहे हैं. Civil Services से लेकर अन्य प्रतिष्ठित नौकरियों के लिए एक पद के लिए कई बार एक-एक हजार आवेदन आ जाते हैं.

एक पद के विपरीत 100-200 आवेदन तो सामान्य है. पर, चिकित्सकों के मामले में ऐसा नहीं है. यहां एक पद के विपरीत कई बार आधे आवेदन भी नहीं आते. ऐसे में नीति-नियंताओं को अलग से विचार करना होगा. जानना होगा कि आखिर डॉक्टर सरकार के पास क्यों नहीं आना चाहते? राज्य में 167 जिला पुरुष एवं महिला अस्पताल थे. बड़ी संख्या में मेडिकल कॉलेज बनने के बाद लगभग 50 जिला पुरुष एवं महिला अस्पताल हैं. 873 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र हैं. 2934 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं. 593 शहरी पीएचसी अलग से हैं.

यूपी में कितने कम हैं डॉक्टर?

उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में 19 हजार डॉक्टर्स के पद स्वीकृत हैं. 12 हजार डॉक्टर तैनात हैं. मतलब सात हजार पद खाली हैं. जो डॉक्टर तैनात हैं, उनमें से कुछ गैरहाजिर बताए जाते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि एक हजार की आबादी पर कम से कम एक डॉक्टर की जरूरत है. पर, अगर उत्तर प्रदेश की आबादी को 22 करोड़ माना जाए तो राज्य में 18 हजार से ज्यादा की आबादी पर एक डॉक्टर हैं.

क्यों सरकार के साथ काम नहीं करना चाहते डॉक्टर?

स्वास्थ्य विभाग से जुड़े जानकार बताते हैं कि उत्तर प्रदेश को इस समय लगभग 33 हजार से ज्यादा विशेषज्ञ डॉक्टर चाहिए और लगभग छह हजार से ज्यादा एमबीबीएस की जरूरत है. साल 2020 के बाद पद बढ़ाने की कोई चर्चा भी नहीं हुई है. जो डॉक्टर उपलब्ध हैं, उन पर भांति-भांति के प्रतिबंध हैं. आज कोई भी सरकारी डॉक्टर वीआरएस नहीं ले सकता.

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पहले डॉक्टर के रिटायरमेंट की उम्र 58 थी, फिर 60 हुई और अब तो कई डॉक्टर 62 की उम्र में भी काम कर रहे हैं. कोई भी सरकारी डॉक्टर तीन लाख रुपये महीने से ज्यादा वेतन-भत्ते के रूप में नहीं पाता. नतीजतन, पीएमएस में आने को चिकित्सकों में कोई उत्साह नहीं है. विशेषज्ञ डॉक्टर पोस्टमार्टम और वीआईपी एम्बुलेंस ड्यूटी कर रहे हैं.

हाल ही में उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग ने डॉक्टर के 401 पदों के लिए वैकेंसी निकाली. सिर्फ 40 पद भरे जा सके. बाकी सब खाली रह गए. इसी महीने हुए इंटरव्यू में कुल 40 ही डॉक्टर आए और सभी सेलेक्ट भी हो गए. इससे अंदाजा लगाना आसान हो जाता है कि राज्य सरकार की सेवाओं के प्रति चिकित्सकों में कितनी अरुचि है? ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. अनेक बार पहले भी आयोग ऐसी समस्या का सामना कर चुका है.

पांच लाख की सैलरी के लिए नहीं मिल रहे डॉक्टर

डॉक्टरों की इस कमी से जूझ रही राज्य सरकार ने ठेके पर डॉक्टर भर्ती करने का फैसला लिया और पांच लाख रुपये महीने की अधिकतम सैलरी तय की. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत 1200 विशेषज्ञ डॉक्टर्स की वैकेंसी निकाली. बमुश्किल सौ डॉक्टर इस मुहिम के माध्यम से तैनात किए जा सके. इनमें पांच लाख वाले भी हैं तो उसे कम वाले भी.

सुनने में यह शुरुआत बहुत बढ़िया लग सकती है. पर, राज्य में वर्षों से सेवा कर रहे चिकित्सक इसे बहुत व्यावहारिक नहीं मान रहे हैं. उनका कहना है कि इससे भांति-भांति की कड़ी ड्यूटी करने वाले डॉक्टर हतोत्साहित भी हो सकते हैं. क्योंकि रेगुलर सर्विस में आने वाले डॉक्टर को शुरुआती दिनों में एक लाख रुपये भी वेतन के रूप में नहीं मिलता.

डॉक्टरों के लिए पॉलिसी बनाने की जरूरत

अब मेडिकल शिक्षा की जो स्थिति है, उसमें पैसा भी खर्च हो रहा है और मेहनत भी खूब लगती है. ऐसे में डॉक्टर समुदाय के लिए सरकार को भी अलग पॉलिसी तय करनी होगी. ऐसा नहीं करने की सूरत में राज्य में चिकित्सकों की कमी बनी रहेगी. इतनी बड़ी आबादी को ठेके पर नहीं छोड़ा जा सकता है.

एक अफसर कहते हैं कि ठेके पर हाल ही में हुई भर्ती के तहत सबसे महंगे डॉक्टर के रूप में डॉ गणेश सिंह का चयन हुआ है. वे बेहोशी के डॉक्टर हैं और चित्रकूट जिले के राजपुर सीएचसी पर तैनात किए गए हैं. सबसे ज्यादा 30 बेहोशी के डॉक्टर इस खेप में भर्ती हुए हैं. सबसे कम सेलरी 1.05 लाख डॉ विशाल जयंत की फिक्स हुई है. उन्हें बागपत में तैनात किया गया है. इन चिकित्सकों की ड्यूटी सिर्फ आठ घंटे की है. उसके बाद आने वाली किसी भी समस्या के लिए वे जिम्मेदार नहीं हैं.

समय आ गया है कि राज्य सरकार इस मसले को गंभीरता से ले और चिकित्सकों के लिए कोई नई पॉलिसी लेकर आए, तभी इस संकट से बचा जा सकेगा. अन्यथा, यह मुश्किल बनी रहेगी. ओपीडी से भीड़ कभी कम नहीं होगी. पीएचसी, सीएचसी में कभी पूरे डॉक्टर नहीं मिल पाएंगे.

पीएमएस के एक पदाधिकारी ने कहा कि सरकार को अब इसके लिए अलग से प्लान बनाना होगा. डॉक्टरों की जरूरत समझनी होगी. वर्षों की मेहनत, पैसा लगाने के बाद जितना पैसा सरकार वेतन के रूप में देती है, उससे कहीं ज्यादा डॉक्टर निजी अस्पतालों में कमा लेते हैं. सरकार को नए सिरे से सोचना होगा. इस पेशे के लिए सामान्य नीति अब काम नहीं करेगी, पर कोई सुनने को तैयार नहीं है.

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