दुनिया के महान क्रिकेटरों में एक राहुल द्रविड़ के 45वें जन्म दिन से ठीक दो दिन पहले उन्हें उनके बड़े बेटे समित द्रविड़ ने शानदार तोहफ़ा दिया, समित ने अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाने के संकेत देते हुए कर्नाटक स्टेट क्रिकेट एसोसिएशन के अंडर-14 क्रिकेट टूर्नामेंट में उन्होंने शानदार 150 रन ठोके.
वैसे समित को अभी लंबा सफ़र तय करना है क्योंकि किसी के लिए भी राहुल द्रविड़ होना इतना आसान भी नहीं है. द्रविड़ को संन्यास लिए छह साल बीत चुके हैं, लेकिन भारतीय क्रिकेट टीम में उनकी खाली जगह को भरने वाला क्रिकेटर नहीं मिल पाया है, जिसे आप भारतीय क्रिकेट की दीवार कह सकें.
केपटाउन टेस्ट में दक्षिण अफ्रीका के ख़िलाफ़ 208 रन की चुनौती के सामने ढेर होते टीम इंडिया को देखकर राहुल द्रविड़ बार-बार याद आते रहे.
सचिन तेंदुलकर, वीरेंद्र सहवाग और सौरव गांगुली के आक्रामकता और स्टारडम के सामने राहुल द्रविड़ ज़रूर कमतर आंके जाते रहे हों लेकिन टीम इंडिया की भरोसेमंद दीवार वही थे.
आंसुओं के बीच राहुल द्रविड ने कहा शुक्रिया
‘क्रिकेट में एक ही राहुल द्रविड़ हो सकता है….’
उनकी इस ख़ासियत को आप वीरेंद्र सहवाग के उस ट्वीट में समझ सकते हैं जिसमें उन्होंने कहा था, ”वे हमेशा वी के लिए खेले. लेकिन वे बहुत बड़े सी थे. कमिटमेंट, क्लास, कंसिस्टेंसी, केयर. एक साथ खेलने पर मुझे गर्व है.”
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सहवाग के वी के लिए यहां विक्टरी के अलावा दूसरा शब्द नहीं दिखाई देता और सी का मतलब उन्होंने ख़ुद ही बता दिया है.
कमिटमेंट, क्लास, कंसिस्टेंसी, केयर को अगर आप आंकड़ों में देखना चाहें तो 164 टेस्ट में 13 हज़ार से ज्यादा रन, 36 शतक और 344 वनडे मैचों में करीब 11 हज़ार रन के अलावा 12 शतक में देख सकते हैं. टेस्ट में 210 कैच और वनडे में 196 कैच. इसके अलावा ढेरों वनडे मुक़ाबलों में विकेटकीपिंग.
लेकिन कई बार आंकड़े पूरी बात नहीं बताते, एक शतक और एक मैच बचाने वाली पारी के अंतर का पता आंकड़ों से नहीं चलता. राहुल द्रविड़ की पहचान भारत के लिए मैच बचाने और मैच बनाने वाले खिलाड़ी की रही.
पिछले दिनों जॉगरनट पब्लिकेशन से भारत के उन टेस्ट मैचों पर एक किताब आयी, ”फ्राम मुंबई टू डरबन”, जिनमें भारतीय क्रिकेट टीम ने हैरतअंगेज प्रदर्शन किया है. एस. गिरिधर और वीजे रघुनाथ ने इस पुस्तक में 28 टेस्ट मैचों को शामिल किया है और 2001 में कोलकाता के ऐतिहासिक टेस्ट को सबसे बेहतरीन जीत माना है.
द्रविड़
ये वही टेस्ट है जिसमें वीवीएस लक्ष्मण के 281 रनों का साथ देते हुए द्रविड़ ने 180 रनों की बेहतरीन पारी खेली थी. गिरिधर और रघुनाथ ने विस्तार से बताया है कि किस तरह द्रविड़ की पारी भी उतनी ही महत्वपूर्ण थी.
इन महान टेस्ट मैचों की सूची में टेस्ट 2003 में खेला गया एडिलेड टेस्ट भी है, जिसमें द्रविड़ ने पहली पारी में 233 रन और दूसरी पारी में नाबाद 72 रन बनाकर भारत के लिए मैच जीत लिया था. द्रविड़ के इस प्रदर्शन को भारतीय टेस्ट इतिहास में किसी टेस्ट में विदेशी मैदानों पर सबसे बेजोड़ माना जाता है.
इंटरनेशनल करियर के आखिरी दिनों में भी 2011 के इंग्लैंड दौरे पर जब भारतीय बल्लेबाज़ रनों के लिए तरस रहे थे, तब द्रविड़ ने सिरीज़ में तीन शतक ठोक दिए थे.
राहुल द्रविड़ ने 2003 से 2007 तक भारत की कप्तानी भी की, हालांकि कोच ग्रेग चैपल के चलते उनकी कप्तानी विवादों में भी रही. उस वक्त टीम के अंदर गुटबाजी भी उभर आई थी और द्रविड़ के कुछ फैसलों पर सवाल भी उठे थे, लेकिन विज़़डन इंडिया के एडिटर दिलीप प्रेमचंद्रन की नज़रों में द्रविड़ रणनीति बनाने के लिहाज से भारत के सबसे बेस्ट कप्तान रहे हैं.
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इसके अलावा द्रविड़ की अपनी तमाम ख़ासियतें भी रहीं. इएसपीएन क्रिकइंफो से प्रकाशित राहुल द्रविड़ टाइमलेस स्टील में उनकी पत्नी विजेता द्रविड़ ने लिखा है- शादी से पहले राहुल द्रविड़ एकाध बार नागपुर में मेरे घर खाना खाने आए थे. उस दौरान कभी नहीं लगा कि वे भारतीय क्रिकेट टीम के स्टार हैं. क्योंकि वे अपने बारे में कुछ बोल ही नहीं रहे थे, वे क्रिकेट से ज़्यादा मेरी मेडिकल की पढ़ाई और मेरी इंटर्नशिप के बारे में जानना चाहते थे. वे दूसरे लोग और उनके काम को ज़्यादा गंभीरता से लेने वाले हैं, ख़ुद को नहीं.
ऐसा ही एक दूसरे वाकये का जिक्र करते हुए विजेता ने लिखा, 2004 में द्रविड़ को सौरव गांगुली के साथ पद्मश्री मिला था, सम्मान मिलने के अगले दिन अख़बार में पहले पन्ने पर दोनों की तस्वीरें छपी हुई थी, उसे देखकर उन्होंने कहा था कि पहले पन्ने पर ऐसी फोटो का छपना दुर्भाग्यपूर्ण है. द्रविड़ का मानना है कि हीरो शब्द का इस्तेमाल बहुत संभल कर करना चाहिए और वास्तविक हीरो तो हमारे सैनिक, वैज्ञानिक और डॉक्टर हैं.
बहरहाल राहुल द्रविड़ करीब 16 साल लंबे करियर में भारतीय टीम के हीरो बने रहे. क्रिकेट के प्रति प्रतिबद्धता का आलम ही है कि संन्यास के बाद जब भारतीय क्रिकेट बोर्ड ने उनसे युवा प्रतिभाओं को निखारने का काम कहा तो अंडर-19 और भारत- ए टीम की कोचिंग का जिम्मा उन्होंने संभाल लिया.
उनकी पहचान बहुत कम बोलने वाले क्रिकेटर की रही और अब जब वे क्रिकेट कोच की भूमिका निभा रहे हैं तो भी मीडिया से उन्होंने हमेशा एक तरह की दूरी बरती. विजेता ने इस बारे में भी साफ़गोई से लिखा है कि फ़ोन पर बात करते हुए मुझे कई बार उनसे कहना पड़ता है कि हैलो, मैं तुम्हारी वाइफ़ हूं, तुम प्रेस कांफ्रेंस में नहीं बोल रहे हो.