महाराष्ट्र राज्य मानवाधिकार आयोग ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को निर्देश दिया है कि वह मृतक एमबीए छात्र संतोष सिंह के पिता को 15 लाख रुपए का हर्जाना दे। ऐसा इसलिए क्योंकि जांच एजेंसी ने सिंह के मामले में गलत जांच की और इस वजह से उन्हें न्याय मिलने में देरी हुई। आयोग ने कहा कि मृतक के पिता पिछले सात सालों से न्याय का इंतजार कर रहे हैं लेकिन मजिस्ट्रेट कोर्ट को पता चला है कि सीबीआई ने गलत दिशा में जांच की, जिससे उनके काम करने के तरीके पर भी शक पैदा होता है।
आयोग का यह निर्देश पटना के रहने वाले विजय सिंह की शिकायत पर आया है। 15 जुलाई 2011 को विजय का बेटा संतोष संदिग्ध परिस्थितियों में मृत मिला था। आयोग ने कहा कि यह मौलिक अधिकारों के हनन का मामला है इसलिए 6 हफ्ते के अंदर जुर्माने की रकम दी जाए और अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए। आयोग के सदस्य एमए सईद ने अपने आदेश में सीबीआई से कहा है कि वह अपने अधिकारियों को इस तरह के मामले की जांच में संवेदनशील बरतने को कहें और नियम और कानून के मुताबिक ही जांच करें।
विजय सिंह ने आयोग में साल 2011 में शिकायत दर्ज करवाई थी। जिसमें पांच साल के बाद सबूतों के साथ संशोधन किया गया था। सीबीआई जोकि हाईकोर्ट के आदेशानुसार हत्या के मामले की जांच कर रही थी उसने इसे आत्महत्या बताकर पनवेल कोर्ट में मैजिस्ट्रेट के पास क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की थी। मजिस्ट्रेट कोर्ट ने रिपोर्ट को स्वीकार करने से मना कर दिया था क्योंकि इसमें कई दोष थे और हत्यारोपी को गिरफ्तार करने का आदेश दिया था।
बता दें कि मृतक संतोष अपने तीन दोस्तों विकास कुमार, जितेंद्र कुमार और धीरज कुमार के साथ जनार्दन सदन की चौथी मंजिल पर रहता था। 15 जुलाई 2011 को वह पहली मंजिल की बालकनी में मृत अवस्था में मिला था। खारगढ़ पुलिस ने जितेंद्र के बयानों के मुताबिक, दुर्घटनावश हुई मौत का केस दर्ज किया था। जितेंद्र ने बताया कि संतोष शराब के नशे में था और उसने टॉयलट की खिड़की से कूदकर आत्महत्या कर ली थी। हालांकि मृतक के पिता को पुलिस की जांच पर विश्वास नहीं हुआ। इस वजह से उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की और केस की जांच सीआईडी के पास चली गई। केस की प्रगति से नाखुश विजय फिर हाईकोर्ट पहुंचे और उनकी अर्जी पर केस सीबीआई को सौंपा गया।