दरअसल, पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने पत्नी द्वारा तलाक के लिए दाखिल की गई याचिका पर फैसला सुनाते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि पत्नी से मारपीट ही नहीं बल्कि उसको गुजारा भत्ता देने से इनकार करना भी उसके साथ क्रूरता है। इस टिप्पणी के साथ ही हाईकोर्ट ने महिला की तलाक के लिए दायर की गई याचिका को मंजूर करते हुए डिवोर्स डिक्री उसके हक में जारी कर दी।याचिका दाखिल करते हुए कपूरथला निवासी महिला ने कहा था कि उसका प्रेम विवाह 2005 में चंडीगढ़ में हुआ था। इसके बाद कुछ समय तो सब ठीक रहा लेकिन धीरे-धीरे उसके पति और ससुराल वालों का बर्ताव बदलने लगा। विदेश जाने के लिए उससे डेढ़ लाख रुपये की मांग की गई। विवाद बढ़ा और 2007 में उसे घर से निकाल दिया गया। इसके बाद उसने तलाक के लिए याचिका दाखिल की परंतु पति के अच्छे बर्ताव के आश्वासन के बाद वह घर वापस आ गई।हालात सुधरे नहीं और उसे 2009 में फिर से घर से निकाल दिया गया। पीड़िता ने पुलिस को शिकायत दी और तलाक के लिए केस डाला लेकिन फिर शादी बचाने के लिए केस वापस ले लिया। अब याची ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। याची की दलीलों का विरोध करते हुए पति ने याची द्वारा परिजनों से अलग रहने के लिए दबाव बनाने और अक्सर झगड़ा करने की बात कही। साथ ही कहा कि बार-बार याचिका दाखिल की गई और वह इसकी आदी है।हाईकोर्ट ने याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि कोर्ट ने याचिका लंबित रहते पत्नी और बच्चों के गुजारे-भत्ते के लिए 5 हजार रुपये प्रतिमाह गुजारा भत्ता देने के आदेश दिए थे और इन आदेशों का पति ने पालन नहीं किया। ऐसे में यह स्पष्ट होता है कि पति पत्नी के साथ क्रूर था। केवल मारपीट ही नहीं गुजारा भत्ता न देना भी क्रूरता की श्रेणी में आता है। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने एक टिप्पणी भी की।कहा गया कि महिलाओं का प्रयास रहता है कि शादीशुदा जीवन को जहां तक हो सके बचाया जाए। कारण आज भी हमारे समाज में तलाक को कलंक माना जाता है। जब परिस्थितियां बिलकुल ही बिगड़ जाएं तो ही महिला तलाक का रास्ता चुनती है। इस मामले में भी महिला ने दो बार तलाक की याचिका वापस ली है लेकिन हालात नहीं सुधरे। ऐसे में हाईकोर्ट ने तलाक की मांग को मंजूर करते हुए निचली अदालत द्वारा तलाक न देने के फैसले को खारिज कर दिया।