उत्तराखंड में वर्ग तीन और वर्ग चार की भूमि पर काबिज हजारों लोगों को कैबिनेट ने बुधवार को राहत दी। शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक की अध्यक्षता में गठित कैबिनेट की उप समिति की संस्तुति के आधार पर मंत्रिमंडल ने 2004 के सर्किल रेट के आधार पर इस तरह की भूमि के कब्जाधारकों व पट्टेधारकों को मालिकाना हक देने पर सहमति जताई है।
कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक के मुताबिक इससे संबंधित शासनादेश 2016 में जारी किया गया था, जो एक-एक साल के लिए बढ़या जाता रहा। अंतिम शासनादेश एक साल पहले जारी हुआ था, जिसकी अवधि 25 फरवरी 2020 को समाप्त हो चुकी है।
गैर रजिस्ट्री वाली भूमि पर हजारों परिवार काबिज
प्रदेश के कई जिलों में आज भी गैर रजिस्ट्री वाली भूमि पर हजारों परिवार काबिज हैं। इस तरह की भूमि पर बसे परिवारों को भूमिधरी का अधिकार पूर्व में सरकार ने वर्ष 2000 के सर्किल रेट के आधार पर देना तय किया था। 2016 में यह अधिकार 2012 के सर्किल रेट के आधार पर कर दिया गया था।
इस तरह की भूमि देहरादून, हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर, नैनीताल , अल्मोड़ा सहित अन्य जिलों में भी हैं। अब भी इस मामले में कई आवेदन लंबित पड़े हुए हैं। प्रदेश के मैदानी जिलों में इस तरह के अधिक मामले हैं। प्रदेश सरकार पहले भी इस तरह की भूमि के पट्टेधारकों, अवैध कब्जाधारकों को भूमिधरी का अधिकार देने के विस्तृत दिशा निर्देश जारी कर चुकी है।
यह होगा प्रावधान
शहरों के लिए
-100 वर्ग मीटर तक की भूमि में 2004 के सर्किल रेट का पांच प्रतिशत
-200 वर्ग मीटर तक के लिए 2004 का सर्किल रेट
-400 वर्ग मीटर तक के लिए 2004 के सिर्किल रेट का दस प्रतिशत
-इससे अधिक भूमि के लिए 2004 के सर्किल रेट का 25 प्रतिशत अतिरिक्त
ग्रामीण क्षेत्रों के लिए
-2004 का सर्किल रेट
इनका नहीं होगा नियमितीकरण
-जलमग्न, चकमार्ग, गूल, खलिहान, कब्रिस्तान, शमशान घाट, चारागाह, पानी वाली सिंघाड़ा या दूसरी उपज वाली भूमि, नदी तल की कभी-कभी खेती के उपयोग में आने वाली भूमि
कितनी संख्या है, नहीं पता
शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक ने कहा कि इस तरह के कब्जे के कितने मामले हैं, यह अभी स्पष्ट नहीं है। समय-समय पर इस तरह के मामले सामने आते रहते