देहरादून जनपद की दस विधानसभा सीटों पर कई दिग्गजों की साख दांव पर है। अधिकतर सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला ही नजर आ रहा है। हालांकि दोनों दलों की चुनावी गणित में बागी और आम आदमी पार्टी की सेंध से मुकाबला रोचक नजर आ रहा है।
जिले की दस विधानसभा सीटों पर 117 उम्मीदवार की किस्मत ईवीएम में कैद हो गई है। 117 में से 10 कामयाब चेहरे कौन होंगे इसका पता 10 मार्च को चलेगा। सबसे ज्यादा प्रत्याशी धर्मपुर सीट से किस्मत अजमा रहे हैं, यहां से 19 प्रत्याशी मैदान में हैं, जबकि दूसरे नंबर पर रायपुर विधानसभा से 15 प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।
धर्मपुर विधानसभा से दिनेश अग्रवाल और विनोद चमोली आमने-सामने
धर्मपुर विधानसभा से जहां निवर्तमान विधायक विनोद चमोली और पूर्व कैबिनेट मंत्री दिनेश अग्रवाल की साख दांव पर है तो रायपुर से पूर्व कैबिनेट मंत्री व कांग्रेस प्रत्याशी हीरा सिंह बिष्ट, राजपुर से पूर्व विधायक राजकुमार और निवर्तमान विधायक खजान दास के साथ ही देहरादून कैंट सीट से सूर्यकांत धस्माना और पूर्व विधायक हरबंश कपूर की पत्नी सविता कपूर की साख दांव पर है।
ऋषिकेश विधानसभा सीट से विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल, विकासनगर से पूर्व मंत्री नवप्रभात और विधायक मुन्ना सिंह चौहान, सहसपुर से सहदेव सिंह पुंडीर, चकराता से प्रीतम सिंह, मसूरी से कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी की प्रतिष्ठा दांव पर है। सियासत के जानकारों की माने तो हालांकि अधिकतर सीटों पर सीधा मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच सिमटता नजर आ रहा है।
हालांकि दिग्गजों की साख पर निर्दलीय, बागी, उक्रांद और आप पार्टी के प्रत्याशी बट्टा लगाते दिखाई दे रहे हैं। कुछ सीटों पर दिग्गजों की भीतरघात होने की आशंका सता रही है। क्योंकि, धर्मपुर, कैंट, रायपुर डोईवाला सहसपुर में दोनों दलों के कई लोग ऐसे थे, जो टिकट के दावेदार थे लेकिन टिकट नहीं मिलने से काफी नाराज चल रहे हैं।
हार-जीत की गणित में जुटे सियासी दल
इसमें से कुछ तो सीधे बागी होकर चुनाव में दम दिखा रहे हैं, लेकिन कुछ अंदर ही अंदर पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ माहौल बनाते नजर आए। इस भीतरघात का डर भाजपा और कांग्रेस दोनों के दिग्गजों को सता रहा है। लिहाजा कोई भी दिग्गज अभी तक अपनी जीत से पूरी तरह से आश्वस्त नजर नहीं आ रहा है।
उत्तराखंड की 70 सीटों पर मतदान के बाद अब राजनीतिक दल हार-जीत की गणित लगाने में जुट गए हैं। बूथ स्तर पर वोटों की गिनती से हार-जीत का समीकरण बना रहे हैं। वह बात अलग है कि तस्वीर तो 10 मार्च को ही साफ होगी।
सोमवार को प्रदेश के मतदाताओं का जनादेश ईवीएम में बंद हो गया, लेकिन राजनीतिक दल और चुनाव रणी में उतरे प्रत्याशी मतदान के आधार पर हार-जीत का समीकरण बना रहे हैं।
सियासी दलों और उम्मीदवारों की यह गणित कितनी सटीक साबित होती है, यह तो चुनाव नतीजों से स्पष्ट हो पाएगा। इस बार कोरोना संक्रमण के बीच हुए चुनाव में सियासी दलों और उम्मीदवारों को प्रचार का ज्यादा वक्त नहीं मिला। मतदान के कुछ दिन पहले ही दलों ने दिग्गजों को उतारकर चुनाव प्रचार को धार दी थी। भाजपा, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी के शीर्ष नेताओं ने चुनावी मैदान में मोर्चा संभाला था। साथ ही सभी दलों ने अपने घोषणा पत्र में लोक लुभावने वादे भी किए थे।