वेस्ट यूपी के 24 लाख गुर्जरों के नाराज़ होने का डर, MP में भी मुश्किल: जानिए क्यों पायलट से समझौते के मूड में प्रियंका गाँधी

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राजस्थान में सचिन पायलट की बगावत के बाद अशोक गहलोत ने उन्हें और उनके साथी नेताओं को बाहर निकालने की प्रक्रिया शुरू कर दी। इधर प्रियंका गाँधी के हस्तक्षेप के बाद उनसे बातचीत शुरू हो गई और समझौते की अटकलें आने लगीं। ख़ुद सचिन पायलट ने स्वीकार किया था कि उनकी प्रियंका गाँधी से ‘व्यक्तिगत रूप से’ बातचीत हुई है, लेकिन इसका कोई निष्कर्ष नहीं निकल पाया है। इन सबकी जड़ में ‘गुर्जर समाज’ का डर है।

प्रियंका गाँधी आखिर सचिन पायलट के जाने से इतनी बेचैन क्यों हैं? वो इतना तो ज़रूर चाहती रही होंगी कि अगर पायलट जाएँ भी तो कॉन्ग्रेस की ऐसी छवि न बने कि उसने सचिन पायलट के साथ कुछ गलत किया है। उनके डर का कारण क्या था? दरअसल, राजेश पायलट कभी देश में गुर्जरों के सबसे बड़े नेता माने जाते थे। सचिन पायलट ने उनकी विरासत सँभाल रखी है। ऐसे में प्रियंका के डर का कारण हम आपको बताते हैं।

इसे समझने के लिए आपको पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जातीय अंकगणित को समझना पड़ेगा चूँकि इस पूरे मामले की जड़ मे भी जाति ही है, हमें भी जाति की बात करनी ही पड़ेगी। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यूँ तो माना जाता है कि राजपूतों की जनसंख्या ज्यादा है, लेकिन वहाँ सबसे ज्यादा प्रभाव गुर्जरों अथवा गुज़्जरों का है, जो किसी भी पार्टी की हार-जीत में निर्णायक भूमिका में होते हैं। प्रियंका गाँधी कि नजर इसी वोट बैंक पर है।

राजस्थान की राजनीति अब उत्तर प्रदेश को प्रभावित कर रही है। वेस्ट यूपी में अकेले गौतम बुद्ध नगर में 3 लाख गुर्जर हैं। इसी तरह ढाई लाख गुर्जर सहारनपुर में हैं। मेरठ-हापुड़, गाजियाबाद और अमरोहा में इनकी जनसँख्या डेढ़-डेढ़ लाख है। मुजफ्फरनगर में ये सवा लाख की संख्या में हैं। कुल मिला दें तो पूरे पश्चिमी यूपी में 14 लाख गुर्जर हैं, जो कॉन्ग्रेस के लिए मुसीबत का सबब बनने जा रहे हैं। यही प्रियंका के ‘डर’ का कारण है।

सचिन पायलट को राजस्थान में गुर्जर-मीणा एकता का प्रतीक माना जाता है। ख़बर आई है कि हरियाणा के नूह स्थित आईटीसी ग्रैंड होटल में जहाँ सचिन पायलट गुट के विधायक रुके हुए हैं, वहीं पर गुर्जरों के दिग्गज नेता धर्मपाल राठी का फार्म हाउस है। उनके पास लगातार राज्य के कई इलाक़ों के गुर्जरों नेताओं और कार्यकर्ताओं के फोन आ रहे हैं। उनके घर पर लोगों की भीड़ जुट रही है।

‘एनडीटीवी’ की एक ख़बर के अनुसार, धर्मपाल राठी द्वारा गुर्जर महापंचायत बुलाने की अफवाह भर से वहाँ कई नेताओं का जमावड़ा लग गया। राठी ने स्पष्ट कर दिया है कि वो सचिन पायलट के साथ खड़े हैं। हालाँकि, कोरोना के दौर में उन्होंने महापंचायत की बात से इनकार किया। लेकिन, लोग लगातार पहुँच रहे हैं।

अब आप सोचिए, जब एक अफवाह का इतना असर होता है तो गुर्जरों ने सच में शक्ति-प्रदर्शन कर दिया तो उससे कॉन्ग्रेस को कितना नुकसान पहुँचेगा।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हापुड़ में इसका असर देखने को मिल भी रहा है। वहाँ ‘युवा गुर्जर महासभा’ ने सचिन पायलट के पक्ष में आवाज़ बुलंद करते हुए कॉन्ग्रेस का विरोध किया। गुर्जर समाज ने आरोप लगाया कि राजेश पायलट ने अपनी पूरी ज़िंदगी कॉन्ग्रेस को दे दी, लेकिन उनके साथ भी षड्यंत्र रचा गया था। उन्होंने धमकाया कि गुर्जर समाज आन्दोलनों के लिए ही जाना जाता है। उन्होंने कॉन्ग्रेस की निंदा की।

अगर आप उपर्युक्त बयानों को देखें तो इससे गुर्जरों के गुस्से का अंदाज़ा लग जाता है। गुर्जर समाज हमेशा से अपने समुदाय के हितों को लेकर सजग रहा है और समय-समय पर कड़ा रुख अख्तियार करता रहा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 30 जिले हैं, जहाँ प्रियंका गाँधी गुर्जर वोटरों को नाराज नहीं करना चाहती हैं और इसीलिए वो सचिन पायलट से समझौते के पक्ष में हैं। गुर्जर समाज का डर उनके सिर चढ़ कर बोल रहा है।

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