केन्द्र सरकार के किसान विरोधी काले कानूनों के विरोध में किसानों द्वारा चलाये जा रहे आन्दोलन को कुचलने के लिए किये जा रहे उत्पीड़न व अत्याचार के विरोध में आज दिनांक 28 नवम्बर, 2020 .. कांग्रेस ने केन्द्र सरकार के किसान विरोधी कानून व किसानों के उत्पीड़न के विरोध में किया पुतला दहन
हर बदलाव को सुधार नहीं कहा जा सकता है. कुछ विनाश का कारण भी बन सकते है. देश ने ऐतिहासिक सुधार के नाम पर नोटबंदी को झेला और भयावह परिणाम देखने को मिले. इस एक कदम से लाखों नौकरियां और सैकड़ों जिंदगियां खत्म हो गईं. जीएसटी को भारत की आर्थिक आजादी के रूप में दिखाया गया. दो फीसदी जीडीपी बढ़ाने का दावा किया गया.
क्या जिम्मेदारी से बचना चाहती है सरकार: आज सरकार अपनी जिम्मेदारी से भाग रही है. कृषि सुधार के नाम पर किसानों को निजी बाजार के हवाले कर रही है. हाल ही में देश के बड़े पूंजीपतियों ने रीटेल ट्रेड में आने के लिए कंपनियों का अधिग्रहण किया है. सबको पता है कि पूंजी से भरे ये लोग एक समानांतर मजबूत बाजार खड़ा कर देंगे. बची हुई मंडियां इनके प्रभाव के आगे खत्म होने लगेंगी. ठीक वैसे ही जैसे मजबूत निजी टेलीकॉम कंपनियों के आगे बीएसएनल समाप्त हो गई. इसके साथ ही एमएसपी की पूरी व्यवस्था धीरे-धीरे खत्म हो जाएगी. कारण है कि मंडियां ही एमएसपी को सुनिश्चित करती हैं. फिर किसान औने-पौने दाम पर फसल बेचेगा. सरकार बंधन से मुक्त हो जाएगी. ठीक वैसे ही जैसे बिहार की सरकार किसानों के प्रति अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो गई है. वर्ष 2020 में बिहार में गेहूं के कुल उत्पादन का 1% ही सरकारी खरीद हो पाई. बिहार में यही एपीएमसी कानून तो 2006 में ही खत्म किया गया था. सबसे कम कृषि आयों वाले राज्य में आज बिहार अग्रणी है. लेकिन आज यही कानून पूरे देश के लिए क्रांतिकारी बताया जा रहा है. कोई एक सफल उदाहरण नहीं है जहां खुले बाजारों ने किसानों को अमीर बनाया हो.